प्रचारक महाराज ने अपने सचिव से कहा-‘यह बताओ, इस बार अपने प्रचार तंत्र से आय कम होने का कारण क्या है? इधर हमारे विज्ञापन दाता तो उधर हमारे आका दोनों ही हमसे नाराज चल रहे हैं। उनका कहना है कि इधर हमारे प्रचार युद्ध में मजा नहीं आ रहा है। अपने प्रचारतंत्र का स्तर बनाये रखने के लिये प्रयास करना जरूरी है। तुम अपने अधीनस्थ सभी लोगों को जाकर सचेत करो।’
सचिव ने कहा-‘सर, हम क्या करें? हमारे तंत्र की पूरी कोशिश है कि आम आदमी हमारी पकड़ से बाहर नहीं जाये। अखबार, टीवी चैनल और रेडियो पर नित नित नये मनोरंजन कार्यक्रम कभी प्रेम तो कभी द्वंद्व से सजाकर लगातार प्रस्तुत करते हैं। लेाग अपना सारा समय हमारे प्रचार तंत्र में गुजारते हैं या फिर हमारे उद्घोषकों की सुझायी गयी जगहों में गुजारते हैं। होटल, मॉल और बारों के अपने पास खूब विज्ञापन भी मिलते है। कम से कम एक बात तय है कि आज की युवा या बुढ़ाई गयी पीढ़ी हमारी पकड़ से बाहर नहीं है।’’
प्रचारक महाराज नाराज हो गये और बोले-‘पूरा समाज हमारी पकड़ में है यह तो पता है। उसकी मुक्ति का मार्ग कोई नहीं है यह भी हम जानते हैं पर मुश्किल यह है कि हमारे दाता और आका अगर प्रसन्न नहीं है तो वह हमारे लिये बहुत बुरा है। उनको भी तो एक आम आदमी के रूप में मनोंरजन, सनसनी और कामेडी का मसाला चाहिए। यह सबसे बड़ी बात है। हम समाज सेवकों, अभिनेताओं, अभिनेत्रियों और बाहुबलियों का गुणगान करते हैं उससे तो वह खुश हो जाते हैं पर वह मनोरंजन के नये ढंग भी देखना चाहते हैं। उनके लिये प्रकाशनों और प्रसारणों में प्रेम और द्वंद्व के नये नये कार्यक्रम इस तरह सजाओं कि खास आदमी भी हमारे जाल में वैसे ही फंसा रहे जैसे कि आम आदमी।
सचिव बोला-‘अब हम कर भी क्या सकते हैं। क्रिकेट, फिल्म, हास्य और रुदन वाले टीवी धारावाहिकों में रोज नवीनता लाते हैं। कभी क्रिक्रेटर को भी रैम्प पर नचवाते हैं तो आदमियों को नारी वेश में सजाकर कॉमेडी भी करवाते हैं। नारीपात्रों से सैक्सी चुटकुले भी सुनाते हैं। कभी यस बॉस जैसे घरेलू कार्यक्रमों में बदनाम लोग भी सजाते हैं तो कभी नकली अदालतें भी चलवाते हैं।’’
प्रचारक महाराज बोले-‘यह सब बकवास है। दरअसल ऐसे मुद्दे लाओ जिससे समाज में सामूहिक सनसनी फैले। लोग बहस में तर्क कम दें चीखके और चिल्लायें ज्यादा! ऐसा लगे कि जैसे झंगड़ा हो रहा है। लोगों को दूसरों का झगड़ा देखना पसंद है।
सचिव बोला-‘वह तो आतंकवाद के मुद्दे पर हमेशा ही करते हैं। कभी किसी रेलदुर्घटना या जहरीली शराब पीने की घटना के समाचार सनसनी फैलाते हैं तो हम उन पर संवदेनशील बहस भी चलवाते हैं। लोग ऐसे लाते हैं कि जो तर्क कम दें बल्कि चीखें और चिल्लायें ज्यादा, साथ ही नारों को समाज सुधार का मंत्र बताने लगें।’’
प्रचारक महाराज बोले-‘नहीं, तुम समझे नहीं! नये नये प्रकार के झगड़े ले आओ। स्त्री पुरुष अमीर गरीब, पूंजपति मजदूर और शोषक और शोषित वर्ग की जंग में मजा नहीं आता। यह सब पुराना पड़ गया है।
सचिव बोला-‘‘अब झगड़े तो इसी प्रकार के ही हो सकते हैं। यह तो संभव नहीं है कि किसान और क्लर्क के बीच में युद्ध कराया जाये।
प्रचारक महाराज एक उछल गये और बोले-‘वाह, क्या आईडिया दिया है। कितना आकर्षण है इन शब्दों मे, जिसे तुम किसान क्लर्क युद्ध कह रहे हों। हां, करवाओं यह युंद्ध। अपने दाता और आका दोनों ही खुश होंगे क्योंकि इसमें दोनों का कुछ नहीं बिगड़ेगा। हमारे दाता और आका दोनेां ही खुश होंगे। जनता की खुश होगी। नया विषय और नया शीर्षक होगा ‘किसान क्लर्क युद्ध’!’
सचिव ने पूछा-‘मगर क्लर्क कोई हैसियत नहीं रखते। फाइलों पर फैसला तो बड़े लेाग ही लेते हैं। यही बड़े तो हमारी फाइलों से भी दो चार होते हैं। फाईल और धरती के बीच टेबल भी होती है इसलिये क्लर्क और किसान युद्ध नहीं हो सकता।
प्रचारक महाराज एकदम उत्तेजित स्वर में बोले-‘अब तुम खामोश हो जाओ। यहां से जाकर अपने सलाहकार फिक्सर साहब को भेजो। वही अंग्रेज मेरी बात समझेगा। अरे, तुम कुछ विचार नहीं कर सकते। देखो शहरों में अनेक ज्रगह किसानों की जमीन लेकर कॉलोनियां बसाई गयी हैं। इन कालोनियों में बड़े लोग भी रहते पर उनमें क्लर्क यानि मध्यम वर्ग अधिक रहता है। जाओ किसानों में असंतोष फैलाओ फिर क्लर्क भी आंदोलन करेेंगे। दोनो के विवाद पर बहस होगी। इस तरह नयी सनसनी बनेगी। नये मुद्दे पर बहस होगी। अपने विज्ञापन खूब चलेंगे। इससे दाता भी खुश होंगे और आका भी मजे में रहेंगे।
सचिव बोला-‘मगर इस पर पैसा खर्च होगा।’
प्रचारक महाराज बोले-‘मूर्ख कहीं के, पैसे खर्च होंगे तो होने दो। आयेंगे भी तो हमारे पास ही न। अरे, हमसे जमीन और पैसा लेकर कौन कहां जा सकता है! घूम फिरकर आना अपने पास ही है। जितना उनके पास जायेगा उतना खर्च तो आना ही है। कमाने पर भी पैसा खर्च होता है। अगर, हम ऐसा न करें तो सनसनी और मनोरंजन की वैसी सामग्री कहां से आयेगी जो विज्ञापनों के बीच में डाली जा सके। अब तुम जाओ और फिक्सर को बुलाओ।’’
सचिव चला गया और उधर से फिक्सर साहब आ रहा था।
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सचिव ने कहा-‘सर, हम क्या करें? हमारे तंत्र की पूरी कोशिश है कि आम आदमी हमारी पकड़ से बाहर नहीं जाये। अखबार, टीवी चैनल और रेडियो पर नित नित नये मनोरंजन कार्यक्रम कभी प्रेम तो कभी द्वंद्व से सजाकर लगातार प्रस्तुत करते हैं। लेाग अपना सारा समय हमारे प्रचार तंत्र में गुजारते हैं या फिर हमारे उद्घोषकों की सुझायी गयी जगहों में गुजारते हैं। होटल, मॉल और बारों के अपने पास खूब विज्ञापन भी मिलते है। कम से कम एक बात तय है कि आज की युवा या बुढ़ाई गयी पीढ़ी हमारी पकड़ से बाहर नहीं है।’’
प्रचारक महाराज नाराज हो गये और बोले-‘पूरा समाज हमारी पकड़ में है यह तो पता है। उसकी मुक्ति का मार्ग कोई नहीं है यह भी हम जानते हैं पर मुश्किल यह है कि हमारे दाता और आका अगर प्रसन्न नहीं है तो वह हमारे लिये बहुत बुरा है। उनको भी तो एक आम आदमी के रूप में मनोंरजन, सनसनी और कामेडी का मसाला चाहिए। यह सबसे बड़ी बात है। हम समाज सेवकों, अभिनेताओं, अभिनेत्रियों और बाहुबलियों का गुणगान करते हैं उससे तो वह खुश हो जाते हैं पर वह मनोरंजन के नये ढंग भी देखना चाहते हैं। उनके लिये प्रकाशनों और प्रसारणों में प्रेम और द्वंद्व के नये नये कार्यक्रम इस तरह सजाओं कि खास आदमी भी हमारे जाल में वैसे ही फंसा रहे जैसे कि आम आदमी।
सचिव बोला-‘अब हम कर भी क्या सकते हैं। क्रिकेट, फिल्म, हास्य और रुदन वाले टीवी धारावाहिकों में रोज नवीनता लाते हैं। कभी क्रिक्रेटर को भी रैम्प पर नचवाते हैं तो आदमियों को नारी वेश में सजाकर कॉमेडी भी करवाते हैं। नारीपात्रों से सैक्सी चुटकुले भी सुनाते हैं। कभी यस बॉस जैसे घरेलू कार्यक्रमों में बदनाम लोग भी सजाते हैं तो कभी नकली अदालतें भी चलवाते हैं।’’
प्रचारक महाराज बोले-‘यह सब बकवास है। दरअसल ऐसे मुद्दे लाओ जिससे समाज में सामूहिक सनसनी फैले। लोग बहस में तर्क कम दें चीखके और चिल्लायें ज्यादा! ऐसा लगे कि जैसे झंगड़ा हो रहा है। लोगों को दूसरों का झगड़ा देखना पसंद है।
सचिव बोला-‘वह तो आतंकवाद के मुद्दे पर हमेशा ही करते हैं। कभी किसी रेलदुर्घटना या जहरीली शराब पीने की घटना के समाचार सनसनी फैलाते हैं तो हम उन पर संवदेनशील बहस भी चलवाते हैं। लोग ऐसे लाते हैं कि जो तर्क कम दें बल्कि चीखें और चिल्लायें ज्यादा, साथ ही नारों को समाज सुधार का मंत्र बताने लगें।’’
प्रचारक महाराज बोले-‘नहीं, तुम समझे नहीं! नये नये प्रकार के झगड़े ले आओ। स्त्री पुरुष अमीर गरीब, पूंजपति मजदूर और शोषक और शोषित वर्ग की जंग में मजा नहीं आता। यह सब पुराना पड़ गया है।
सचिव बोला-‘‘अब झगड़े तो इसी प्रकार के ही हो सकते हैं। यह तो संभव नहीं है कि किसान और क्लर्क के बीच में युद्ध कराया जाये।
प्रचारक महाराज एक उछल गये और बोले-‘वाह, क्या आईडिया दिया है। कितना आकर्षण है इन शब्दों मे, जिसे तुम किसान क्लर्क युद्ध कह रहे हों। हां, करवाओं यह युंद्ध। अपने दाता और आका दोनों ही खुश होंगे क्योंकि इसमें दोनों का कुछ नहीं बिगड़ेगा। हमारे दाता और आका दोनेां ही खुश होंगे। जनता की खुश होगी। नया विषय और नया शीर्षक होगा ‘किसान क्लर्क युद्ध’!’
सचिव ने पूछा-‘मगर क्लर्क कोई हैसियत नहीं रखते। फाइलों पर फैसला तो बड़े लेाग ही लेते हैं। यही बड़े तो हमारी फाइलों से भी दो चार होते हैं। फाईल और धरती के बीच टेबल भी होती है इसलिये क्लर्क और किसान युद्ध नहीं हो सकता।
प्रचारक महाराज एकदम उत्तेजित स्वर में बोले-‘अब तुम खामोश हो जाओ। यहां से जाकर अपने सलाहकार फिक्सर साहब को भेजो। वही अंग्रेज मेरी बात समझेगा। अरे, तुम कुछ विचार नहीं कर सकते। देखो शहरों में अनेक ज्रगह किसानों की जमीन लेकर कॉलोनियां बसाई गयी हैं। इन कालोनियों में बड़े लोग भी रहते पर उनमें क्लर्क यानि मध्यम वर्ग अधिक रहता है। जाओ किसानों में असंतोष फैलाओ फिर क्लर्क भी आंदोलन करेेंगे। दोनो के विवाद पर बहस होगी। इस तरह नयी सनसनी बनेगी। नये मुद्दे पर बहस होगी। अपने विज्ञापन खूब चलेंगे। इससे दाता भी खुश होंगे और आका भी मजे में रहेंगे।
सचिव बोला-‘मगर इस पर पैसा खर्च होगा।’
प्रचारक महाराज बोले-‘मूर्ख कहीं के, पैसे खर्च होंगे तो होने दो। आयेंगे भी तो हमारे पास ही न। अरे, हमसे जमीन और पैसा लेकर कौन कहां जा सकता है! घूम फिरकर आना अपने पास ही है। जितना उनके पास जायेगा उतना खर्च तो आना ही है। कमाने पर भी पैसा खर्च होता है। अगर, हम ऐसा न करें तो सनसनी और मनोरंजन की वैसी सामग्री कहां से आयेगी जो विज्ञापनों के बीच में डाली जा सके। अब तुम जाओ और फिक्सर को बुलाओ।’’
सचिव चला गया और उधर से फिक्सर साहब आ रहा था।
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कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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